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अ॒न्धन्तमः॒ प्र वि॑शन्ति॒ येऽस॑म्भूतिमु॒पास॑ते। ततो॒ भूय॑ऽइव॒ ते तमो॒ यऽउ॒ सम्भू॑त्या र॒ताः ॥९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒न्धम्। तमः॑। प्र। वि॒श॒न्ति॒। ये। अस॑म्भूति॒मित्यस॑म्ऽभूतिम्। उ॒पास॑त॒ इत्यु॑प॒ऽआस॑ते ॥ ततः॑। भूय॑ऽइ॒वेति॒ भूयः॑ऽइव। ते। तमः॑। ये। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। सम्भू॑त्या॒मिति॒ सम्ऽभू॑त्या॒म्। र॒ताः ॥९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:40» मन्त्र:9


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कौन मनुष्य अन्धकार को प्राप्त होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो लोग परमेश्वर को छोड़कर (असम्भूतिम्) अनादि अनुत्पन्न सत्व, रज और तमोगुणमय प्रकृतिरूप जड़ वस्तु को (उपासते) उपास्यभाव से जानते हैं, वे (अन्धम्, तमः) आवरण करनेवाले अन्धकार को (प्रविशन्ति) अच्छे प्रकार प्राप्त होते और (ये) जो (सम्भूत्याम्) महत्तत्त्वादि स्वरूप से परिणाम को प्राप्त हुई सृष्टि में (रताः) रमण करते हैं (ते) वे (उ) वितर्क के साथ (ततः) उससे (भूय इव) अधिक जैसे वैसे (तमः) अविद्यारूप अन्धकार को प्राप्त होते हैं ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य समस्त जड़जगत् के अनादि नित्य कारण को उपासना भाव से स्वीकार करते हैं, वे अविद्या को प्राप्त होकर क्लेश को प्राप्त होते और जो उस कारण से उत्पन्न स्थूल-सूक्ष्म कार्य्यकारणाख्य अनित्य संयोगजन्य कार्य्यजगत् को इष्ट उपास्य मानते हैं, वे गाढ़ अविद्या को पाकर अधिकतर क्लेश को प्राप्त होते हैं, इसलिये सच्चिदानन्दस्वरूप परमात्मा की ही सब सदा उपासना करें ॥९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

के जना अन्धन्तमः प्राप्नुवन्तीत्याह ॥

अन्वय:

(अन्धम्) आवरकम् (तमः) अन्धकारम् (प्र) प्रकर्षेण (विशन्ति) (ये) (असम्भूतिम्) अनाद्यनुत्पन्नं प्रकृत्याख्यं सत्वरजस्तमोगुणमयं जडं वस्तु (उपासते) उपास्यतया जानन्ति (ततः) तस्मात् (भूय इव) अधिकमिव (ते) (तमः) अविद्यामयमन्धकारम् (ये) (उ) वितर्केण सह (संभूत्याम्) महदादिस्वरूपेण परिणतायां सृष्टौ (रताः) ये रमन्ते ते ॥९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - ये परमेश्वरं विहायाऽसम्भूतिमुपासते तेऽन्धन्तमः प्रविशन्ति, ये सम्भूत्यां रतास्त उ ततो भूय इव तमः प्रविशन्ति ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - ये जनाः सकलजडजगतोऽनादि नित्यं कारणमुपास्यतया स्वीकुर्वन्ति, तेऽविद्यां प्राप्य सदा क्लिश्यन्ति। ये च तस्मात् कारणादुत्पन्नं पृथिव्यादिस्थूलसूक्ष्मं कार्य्यकारणाख्यमनित्यं संयोगजन्यं कार्य्यं जगदिष्टमुपास्यं मन्यन्ते, ते गाढामविद्यां प्राप्याधिकतरं क्लिश्यन्ति तस्मात् सच्चिदानन्दस्वरूपं परमात्मानमेव सर्वे सदोपासीरन् ॥९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे संपूर्ण जड जगाच्या अनादी नित्य कारणाची (प्रकृती) उपासना करतात ती अविद्येत राहून क्लेश भोगतात व जी माणसे त्या कारणापासून उत्पन्न होणाऱ्या स्थूल व सूक्ष्म अनित्य कार्य जगाच्या संयोगाला इष्ट उपास्य मानतात (आणि त्या सृष्टीत रमतात) ते गाढ अविद्येत राहून अधिकात अधिक क्लेश भोगतात म्हणून सर्वांनी सच्चिदानंद स्वरूप परमेश्वराचीच नेहमी उपासना करावी.